
Asha Parekh Biography in Hindi
1960 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा से सभी को अचम्भित कर देने वाली अभिनेत्री आशा पारेख (Asha Parekh) का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था | उनका पारिवारिक माहौल बेहद धार्मिक था | छोटी सी आयु में ही वह भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने लगी थी | उन्होंने फिल्म “आसमान” (1952) में बाल कलाकार के रूप में फ़िल्मी करियर की शुरुवात की थी | इसके बाद उन्हें “बेबी आशा पारेख” के रूप में पहचान मिली |
निर्देशक बिमल रॉय ने 12 वर्ष की आयु में उन्हें फिल्म “बाप-बेटी” में लिया | इसे कुछ ख़ास सफलता प्राप्त नही हुयी | इसके अलावा उन्होंने ओर भी कई फिल्मो में बाल कलाकार की भूमिका निभाई | उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में कदम रखते ही स्कूल जाना छोड़ दिया था | 16 वर्ष की आयु में उन्होंने दुबारा फ़िल्मी जगत में जाने का निर्णय किया लेकिन फिल्म “गूंज उठी शहनाई” के निर्देशक विजय भट्ट ने उनकी अभिनय प्रतिभा को नजरअंदाज करते हुए उन्हें फिल्म में लेने से इंकार कर दिया लेकिन अगले ही दिन फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी फिल्म “दिल देके देखो” में उन्हें शम्मी कपूर की नायिका बना दिया |
यह फिल्म उन्हें और नासिर हुसैन को काफी नजदीक ले आयी थी | नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी अगली 6 फिल्मो “जब प्यार किसी से होता है ” “फिरवही दिल लाया हु” “तीसरी मंजिल” “बहारो के सपने” “प्यार का मौसम” और “कारवा” में भी नायिका की भूमिका में रखा | खुबसुरत और रोमांटिक अदाकारा के रूप में लोकप्रिय हो चुकी आशा को निर्देशक राज खोसला ने “दो बदन” “चिराग” “मै तुलसी तेरे आंगन की” जैसी फिल्मो में एक संजीदा अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया | इसी सूची में निर्देशक शक्ति सामंत ने “कटी पतंग” “पगला कही का” द्वारा आशा पारेख की अभिनय प्रतिभा को ओर विस्तार दिया | आशा जी ने गुजराती और पंजाबी फिल्मो में भी अभिनय किया |
नासिर हुसैन के अलावा दुसरे बैनर्स में काम करने से आशा पारेख (Asha Parekh) की छवि बदलने लगी थी | उन्हें गम्भीरता से लिया जाने लगा था | राज खोसला निर्देशित “मै तुलसी तेरे आंगन की” “दो बदन” और “चिराग” तथा शक्ति सामंत की “कटी पतंग” ने उन्हें गम्भीर भूमिकाये करने और अभिनय प्रतिभा दिखाने के अवसर प्रदान किये | शम्मी कपूर के साथ उनकी केमिस्ट्री खूब जमी और फिल्म “तीसरी मंजिल” ने तो कई रिकॉर्ड कायम किये | उनकी समकालीन अभिनेत्रियाँ नंदा , माला सिन्हा ,सायरा बानो ,साधना आदि एक एक कर गुमनामी के अँधेरे में खो गयी लेकिन आशा जी अपनी समाज सेवा और कार्यो के कारण लगातार चर्चा में बनी रही |
वर्ष 1995 में अभिनय से निर्देशन में कदम रखने के बाद उन्होंने अभिनय नही किया | माँ की मौत के बाद उनके जीवन में एक शुन्यता आ गयी जिसे समाज सेवा के जरिये भरने की उन्होंने कोशिश की | मुम्बई के एक अस्पताल का पूरा वार्ड उन्होंने गोद ले लिया | उसमे भर्ती तमाम मरीजो की सेवा की और कई जरुरतमन्दो की मदद की | उन्हें “कटी पंतग” के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का “फिल्म फेयर अवार्ड (1970)” “पद्म अवार्ड (1992)” “लाइफ टाइम अचिएवेमेंट अवार्ड (2002)” में प्राप्त हुआ | इसके अतिरिक्त भारतीय फिल्मो में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें “अंतर्राष्ट्रीय भारतीय अकादमी सम्मान (2006)” भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल महासंघ द्वारा लिविंग लीजेंड सम्मान भी दिया गया |
उन्होंने 1990 में गुजराती सीरियल “ज्योति” के साथ टीवी निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा | “आकृति” नामक प्रोडक्शन कम्पनी की स्थापना करने के बाद उन्होंने “कोरा कागज” “पलाश के फुल” “बाजे पायल” जैसे सीरियल का निर्माण किया | 1994 से 2001 तक आशा पारेख (Asha Parekh) Cine Artist Association की अध्यक्ष और 1998-2001 तक केन्द्रीय के सेंसर बोर्ड की पहली महिला चेयरपर्सन रही | आशा जी (Asha Parekh) ने विवाह नही किया | वह कहती है “यदि शादी हो गयी होती तो आज जितने काम कर पायी हु उससे आधे भी नही हो पाते”