
जीजा बाई (JijaBai )का जन्म 1597 में निजामशाह के राज्य सिंधखेड़ में हुआ था | उनके पिता श्री लखुजी जाधव एक महत्वकांक्षी पुरुष थे जो कि निजामशाह के दरबार में पंचहजारी सरदार थे | वे निजाम के नजदीकी सरदारों में से एक थे | एक बार लखुजी जाधव की पत्नी ने निजामशाह की कलाई पर राखी बाँध दी | इसके बदले में निजामशाह ने लखु जी को अपना नया बहनोई मानते हुए दौलताबाद दुर्ग का देशमुख बना दिया | इस प्रकार 27 महलो तथा 52 ग्रामो का प्रशासन चलाने लगे | सुल्तान ने उन्हें राजा की उपाधि दी थी |
लखु जी जाधव तथा महालसा बाई के चार पुत्र (दत्ताजी, अचलोजी, रघुजी, बहादुर जी) एवं एक पुत्री (जीजाबाई) थी | अपने माता-पिता की इकलौती पुत्री होने के कारण बड़े लाड प्यार में पली | जीजाबाई (JijaBai) अपने चाचा जगदेव राव की भी लाडली थी | जगदेवराव ने जीजाबाई को गोद भी ले लिया था | जीजाबाई बचपन से ही महान देशभक्त थी | उन्हें अपने देश और देश की संस्कृति से अखंड प्रेम था यधपि उन्होंने स्वराज्य को स्थापित करने के लिए शस्त्र धारण नही किया था परन्तु शिवाजी जैसे पुत्र को पैदा करके उसमे वीरता का संस्कार देने का श्रेय उन्ही को जाता है जिन्होंने औरंगजेब जैसे मुगल शासक से लोहा लेकर महाराष्ट्र को मुक्त करवाया था |
शिवाजी को शिवाजी बनाने वाली जीजाबाई (JijaBai) ही थी | कहते है कि जीजाबाई ने शिवा भवानी की मूर्ति के आगे विन्रम भाव से अश्रुपूरित नयनो से आंचल फैलाकर देश को स्वतंत्र करने की करुणा पुकार की थी जिससे द्रवित होकर माँ भवानी ने साक्षात प्रकट होकर जीजाबाई को इच्कानुसार आशीर्वाद दिया था | उसी वरदान के फलस्वरूप 10 अप्रैल 1627 ई. को शिवाजी का जन्म हुआ |
शिवाजी भी अपनी माँ की तरह माँ भवानी के उपासक थे तथा उन्हें भी उनका आशीर्वाद प्राप्त था | माँ भवानी के आशीर्वाद एवं जीजाबाई की प्रेरणा से वीर शिवाजी ने अफजल खा का वध किया था |शाइस्ता खा की अंगुलिया काटी थी तथा स्वयं को औरंगजेब से मुक्त करवा लिया था | माँ की प्रेरणा से ही शिवाजी ने सिंहगढ़ जैसे अभेधय दुर्ग पर विजय पाई तथा इस दुर्ग पर अपना झंडा फहराया | इस युद्ध में उनका विश्वासपात्र सेनापति तानाजी शहीद हो गया | इस पर शिवाजी ने कहा “गढ़ तो आया पर सिंह चला गया”|
एक बार जौहर सिद्धी ने शिवाजी को पन्थ्लगढ़ के दुर्ग के भीतर चारो ओर से घेर लिया था | शिवाजी के पास थोड़े से सैनिक बचे थे तथा उनका बाहर निकलना कठिन था | जीजाबाई ने प्रधान सेनापति को बुलाकर कहा “फ़ौज लेकर तुम जौहर सिद्धि पर आक्रमण करो तथा शिवाजी का रास्ता साफ़ करो” परन्तु सेनापति ने उसके पास सेना कम होने के कर्ण आक्रमण करने की असमर्थता बताई | इस पर जीजाबाई क्रुद्ध हो गयी और उसे फटकारते हुए कहा “तुम कायर हो , तुम घर बैठो , शिवाजी शत्रु के किले में बंद है और तुम हार-जीत की चिंता करते हो | धिक्कार है तुम्हे | मै फ़ौज लेकर जाउंगी”|
जीजाबाई (JijaBai) के इस बात पर सेनापति लज्जित हो गया तथा सेना लेकर शत्रुओ पर टूट पड़ा और शिवाजी के लिए रास्ता बना दिया ताकि शिवाजी दुर्ग से बाहर निकल सके | जीजाबाई की प्रेरणा से ही शिवाजी ने अपना अलग राज्य स्थापित किया था | जिस समय जीजाबाई की मृत्यु हुयी वे सत्तर वर्ष की थी | उनकी समाधि रामगढ़ दुर्ग के पांचालगाँव में है | आसपास के जनता बड़ी श्रुद्धा से उनकी समाधि पर दीपक जलाती है और अक्षत और पुष्प से उनकी पूजा करती है |
जीजाबाई बाल्यकाल से ही बड़ी चंचल थी तथा माँ भवानी की मिटटी की प्रतिमा बनाकर उसके साथ खेला करती थी | उनका विवाह मालोजी भोंसले के पुत्र शाहजी के साथ हुआ था | इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है | एक बार होली के उत्सव पर मालोजी अपने 6 वर्षीय पुत्र शाहजी के साथ लखुजी के घर पर आये | उस समय जीजाबाई मात्र 4 वर्ष की थी | उत्सव के दौरान शाहजी और जीजाबाई एक साथ मिलकर खेलने लगे तभी लखुजी के मुह से निकल पड़ा “वाह ! कैसी सुंदर जोड़ी है ” |
मालोजी भोस्ले ने तुरंत सबके सामने कह दिया “फिर तो दोनों की मंगनी पक्की हो गयी” | यह बात जब अहमदनगर के सुलतान के पास पहुची तो उन्होंने इन दोनों को विवाह की अनुमति दे दी | दोनों का विवाह हुआ | धीरे धीरे दोनों बड़े हुए |शाहजी ने वीजापुर नवाब के पास नौकरी कर ली परन्तु जीजाबाई को उनकी चाटुकारिता पसंद नही आयी | धीरे धीरे दोनों में अनबन हुयी अत: शाहजी ने जीजाबाई को शिवनेरी दुर्ग में रख दिया | शिवाजी के जन्म के समय भी वे उत्सव में शामिल नही हुए बल्कि उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया |
जीजाबाई (JijaBai) शिवाजी को लेकर पूना चली गयी तथा शिवाजी का लालन-पालन किया | समर्थगुरु रामदास के आशीर्वाद से वे आगे बढ़ते गये | जीजाबाई की प्रेरणा से वे मराठो का स्वतंत्र राज्य स्थापित कर सके | 1764 ई. में उनका राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति शिवाजी कहा जाने लगा | इस प्रकार मराठा राज्य की स्थापना के मूल में जीजाबाई की प्रेरणा ही थी | 17 जून 1674 को उनकी मृत्यु हो गयी | उन्होंने बचपन से लेकर मृत्यु तक मराठा साम्राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष किया | वीर माता के रूप में उनका नाम युगों युगों तक भारतीयों के होंठो पर अवश्य रहेगा |