
देश के लिए भरी जवानी में फाँसी को गले लगाने वाले राजगुरु (Rajguru) को कभी नही भुलाया जा सकता | राजगुरु (Rajguru )का पूरा नाम शिवराम हरि राजगुरु था | इनका जन्म 1908 में पुणे जिले के खेड़ा गाँव में हुआ था | 6 वर्ष की आयु में पिता का निधन हो जाने से बहुत छोटी उम्र में ही ये वाराणासी विद्याध्ययन करने एवं संस्कृत सीखने आ गये थे | इन्होने हिन्दू धर्म-ग्रंथो तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धांत कौमुदी जैसा क्लिष्ट ग्रन्थ बहुत कम आयु में कंठस्थ कर लिया था | इन्हें कसरत का बेहद शौक था और छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध शैली के बड़े प्रशंसक थे |
वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु (Rajguru) का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियो से हुआ | चन्द्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गये | आजाद की पार्टी के अंदर इन्हें रघुनाथ के छद्म नाम से जाना जाता था राजगूरु के नाम से नही | पंडित चन्द्रशेखर आजाद , सरदार भगतसिंह और यतीन्द्रनाथ दास आदि क्रांतिकारी इनके अभिन्न मित्र थे | राजगूरु (Rajguru) एक अच्छे निशानेबाज भी थे | सांडर्स का वध करने में इन्होने भगतसिंह और सुखदेव का पुरा साथ दिया था जबकि चंद्रशेखर आजाद ने छाया की भाँती इन तीनो को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी |
23 मार्च 1931 को इन्होने भगतसिंह तथा सुखदेव के साथ लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी के तख्ते पर झूलकर अपने नाम को हिंदुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक महत्वपूर्ण घटना थी | देशवासियों को उनकी शहादत पर गर्व है |